भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में से एक ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ को लेकर हाल ही में बड़ी प्रगति हुई है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है। सरकार अब इसे आगामी शीतकालीन सत्र में एक विधेयक के रूप में पेश करने की योजना बना रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसे प्राथमिकता दी है, लेकिन इसके लागू होने के लिए पहले संविधान संशोधन और सभी राज्यों की सहमति आवश्यक होगी। तो चलिए सब कुछ हिंदी में जानते हैं कि One Nation One Election क्या है और और कैसे लागू होगा एक देश में एक चुनाव?
क्या है ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का प्रस्ताव?
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का विचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पहली बार सामने रखा था। उनका मानना था कि यह देश के एकीकरण की प्रक्रिया को मजबूत करेगा। 2024 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भी प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर विचार व्यक्त किए। अब विधि मंत्रालय के 100-दिवसीय एजेंडे के हिस्से के रूप में इस पर कैबिनेट में रिपोर्ट पेश की गई, जिसे मंजूरी प्राप्त हो चुकी है।
कुछ राज्य पहले से ही विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराते हैं, जैसे कि अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, और सिक्किम। जबकि अन्य राज्यों, जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, और छत्तीसगढ़ में चुनाव लोकसभा चुनावों के आसपास होते हैं।
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ पर बहस कैसे शुरू हुई?
2018 में विधि आयोग की एक रिपोर्ट से इस पर चर्चा तेज हुई, जिसमें आर्थिक पहलुओं को आधार बनाया गया। आयोग ने बताया कि 2014 के लोकसभा चुनावों और अलग-अलग विधानसभा चुनावों का खर्च लगभग समान था। अगर चुनाव साथ में होते, तो खर्च कम हो सकता था।
1967 के बाद से एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया में व्यवधान आ गया था, क्योंकि क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ और कई राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गईं।
चुनाव खर्च और चुनाव आयोग पर दबाव
विधि आयोग के अनुसार, 2014 में लोकसभा चुनावों का कुल खर्च 35 अरब 86 करोड़ रुपए था। बार-बार चुनाव कराने से चुनाव आयोग पर वित्तीय और तकनीकी दबाव भी बढ़ता है। 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान तकरीबन 13 लाख बैलेट यूनिट्स और 9.4 लाख कंट्रोल यूनिट्स की जरूरत पड़ी थी। इसके अलावा, ईवीएम मशीनों पर भी भारी खर्च होता है।
पहले कब हुए एक साथ चुनाव?
आजादी के बाद 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। 1968-69 के बाद विधानसभाओं के भंग होने से यह प्रक्रिया बाधित हो गई।
कोविंद समिति की सिफारिशें
कोविंद समिति ने अपने निष्कर्षों में बताया कि 1951 से 1967 तक देश में एक साथ चुनाव होते रहे हैं। विधि आयोग की 1999 की रिपोर्ट और संसदीय समिति की 2015 की रिपोर्ट में भी एक साथ चुनाव की सिफारिश की गई थी। समिति ने राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों से व्यापक परामर्श कर यह निष्कर्ष निकाला कि एक साथ चुनाव कराने के लिए देश में व्यापक समर्थन है।
कोविंद समिति ने यह भी कहा
- 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए हैं।
- 1999 में विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट में पांच वर्षों में एक लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए चुनाव का सुझाव।
- राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों सहित विभिन्न हितधारकों से व्यापक परामर्श किया।
- 2015 में संसदीय समिति की 79वीं रिपोर्ट में दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने के तरीके सुझाए गए।
- रिपोर्ट ऑनलाइन उपलब्ध है: https://onoe.gov.in
निष्कर्ष
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का विचार देश की चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाने और खर्चों को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए कई संवैधानिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना होगा।
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