AI-Kya-hota-hai

Sabkuch Hindi Me
A perfect destination for all about the computer, Technologies, Latest Trends and our festivals and its value in Hindi.
AI-Kya-hota-hai
भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में से एक ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ को लेकर हाल ही में बड़ी प्रगति हुई है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है। सरकार अब इसे आगामी शीतकालीन सत्र में एक विधेयक के रूप में पेश करने की योजना बना रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसे प्राथमिकता दी है, लेकिन इसके लागू होने के लिए पहले संविधान संशोधन और सभी राज्यों की सहमति आवश्यक होगी। तो चलिए सब कुछ हिंदी में जानते हैं कि One Nation One Election क्या है और और कैसे लागू होगा एक देश में एक चुनाव?
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का विचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पहली बार सामने रखा था। उनका मानना था कि यह देश के एकीकरण की प्रक्रिया को मजबूत करेगा। 2024 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भी प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर विचार व्यक्त किए। अब विधि मंत्रालय के 100-दिवसीय एजेंडे के हिस्से के रूप में इस पर कैबिनेट में रिपोर्ट पेश की गई, जिसे मंजूरी प्राप्त हो चुकी है।
कुछ राज्य पहले से ही विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराते हैं, जैसे कि अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, और सिक्किम। जबकि अन्य राज्यों, जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, और छत्तीसगढ़ में चुनाव लोकसभा चुनावों के आसपास होते हैं।
2018 में विधि आयोग की एक रिपोर्ट से इस पर चर्चा तेज हुई, जिसमें आर्थिक पहलुओं को आधार बनाया गया। आयोग ने बताया कि 2014 के लोकसभा चुनावों और अलग-अलग विधानसभा चुनावों का खर्च लगभग समान था। अगर चुनाव साथ में होते, तो खर्च कम हो सकता था।
1967 के बाद से एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया में व्यवधान आ गया था, क्योंकि क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ और कई राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गईं।
विधि आयोग के अनुसार, 2014 में लोकसभा चुनावों का कुल खर्च 35 अरब 86 करोड़ रुपए था। बार-बार चुनाव कराने से चुनाव आयोग पर वित्तीय और तकनीकी दबाव भी बढ़ता है। 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान तकरीबन 13 लाख बैलेट यूनिट्स और 9.4 लाख कंट्रोल यूनिट्स की जरूरत पड़ी थी। इसके अलावा, ईवीएम मशीनों पर भी भारी खर्च होता है।
आजादी के बाद 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। 1968-69 के बाद विधानसभाओं के भंग होने से यह प्रक्रिया बाधित हो गई।
कोविंद समिति ने अपने निष्कर्षों में बताया कि 1951 से 1967 तक देश में एक साथ चुनाव होते रहे हैं। विधि आयोग की 1999 की रिपोर्ट और संसदीय समिति की 2015 की रिपोर्ट में भी एक साथ चुनाव की सिफारिश की गई थी। समिति ने राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों से व्यापक परामर्श कर यह निष्कर्ष निकाला कि एक साथ चुनाव कराने के लिए देश में व्यापक समर्थन है।
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का विचार देश की चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाने और खर्चों को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए कई संवैधानिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना होगा।
कृपया उनकी मदद के लिए इस पोस्ट को उनलोगों तक ज़रूर पहुचाएँ जससे की उनकी ज्ञान मैं वृधि हो सके और अच्छे से समझ सकें। मुझे भी आप सब की सहयोग की बहुत आवश्यकता है जिससे कि कम्प्यूटर और इंटेरनेट से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी हिंदी में आप सब तक पहुँचा सकूँ।
इस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद भी अगर किसी भी तरह की कोई भी doubt है तो आप मुझे कॉमेंट में बेझिझक पूछ सकते हैं। मैं जरुर उन Doubts को विस्तृत मैं आपको बताने की कोशिश करूँगा।
क्लाउड सर्वर जानने के लिए एक उदाहरण से शुरू करते हैं। मान लीजिए की आपने एक व्यवसाय शुरू किया। अभी आप अपने डेटा को आराम से अपने कंप्युटर मे रख सकते हैं।
दोस्तों आपने ‘ब्लॉग’ शब्द जरूर सुना होगा। पर क्या कभी आपने सोचा है की ब्लॉग क्या होता है, इसको शुरू कैसे किया जा सकता है? शुरू करने के लिए किन चीजों की आवश्यकता है। और सबसे जरूरी क्या इससे पैसे कमाए जा सकते है? अगर हाँ, तो कैसे ? क्योंकि आपने सोशल मीडिया के दौर मे ब्लॉग से कमाई के बारे में जरूर सुना होगा। तो चलिए इसके बारे मे विस्तार से जानते हैं –
ब्लॉग, Web blog का सूक्ष्म रूप है। ब्लॉग को ऑनलाइन डायरी या पब्लिशिंग कहा जाता है। जिसमे लेखक अपने ज्ञान, विचार एवं अनुभवों को साझा करता है। ये टेक्स्ट, फोटोग्राफी एवं विडिओ फॉर्म मे भी होते है। इसके अंतर्गत newz, मनोरंजन, खाने की रेसिपी, यात्रा, तकनीकी, स्पोर्ट्स आदि विषयों में जानकारी शेयर की जाती है।
यह एक ऐसा platform है जिस लेखक अपने पसंदीदा एवं विशिष्ट ज्ञान को शेयर करता है। ब्लॉग्स का उपयोग व्यक्तिगत विचार शेयर करने से लेकर business purpose के लिए भी किया जाता है।
ब्लॉगर बनने के लिए आपको आपके विषय मे रुचि एवं ज्ञान होना बहुत जरूरी है नहीं तो आगे अरुचिकर होने के कारण यह कन्टिन्यू नहीं रह पाता है।
niche ऐसा चुने जिसमे आपको विशिष्ट ज्ञान हो। Niche चुनने का सबसे बड़ा फायदा आपके targeted रीडर होते है, जिससे आप उन्ही के अनुसार जानकारी शेयर कर सकते है।
Blogger जो की गूगल का platform है जहां आपको फ्री मे domain मिल जाता है। कुछ paid platform भी हैं जैसे की Godaddy, Hostinger, Namecheap आदि।
हाँ आपने सही सुना की ब्लॉग से बहुत बढ़िया पैसा कामा सकते हैं और बहुत सारे ब्लॉगर कमा भी रहे हैं, नीचे कुछ ऑप्शन दिया है जिसका प्रयोग कर के आप बहुत बढ़िया पैसा बना सकते हैं।
ब्लॉग एक एक ऐसा ओपन platform है जो पैसे कमाने के विभिन्न अवसर प्रदान करता है। सबसे मजेदार चीज आप अपने रुचि के ज्ञान के शेयर करके न सिर्फ पैसे बल्कि लोकप्रियता भी हासिल कर सकते हैं। आप अपने लिखने के शौक को कैसे profession बना देते है ये भी कितना interesting है। यह आवश्यक है की आप अपने कंटेन्ट की quality को maintain या बेहतर करते रहें। अपने पाठकों को समझकर, और मॉनेटाइजेशन प्रक्रिया का प्रयोग करें जिससे मनोवांछित सफलता आपके ब्लॉग को प्राप्त हो सके। अगर धैर्य, ज्ञान, प्रयास और समय का सामंजस्य एक साथ बैठ गया तो ब्लॉग पैसा कमाने का स्थायी जरिया बन सकता है।
कृपया उनकी मदद के लिए इस पोस्ट को उनलोगों तक ज़रूर पहुचाएँ जससे की उनकी ज्ञान मैं वृधि हो सके और अच्छे से समझ सकें। मुझे भी आप सब की सहयोग की बहुत आवश्यकता है जिससे कि कम्प्यूटर और इंटेरनेट से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी हिंदी में आप सब तक पहुँचा सकूँ।
इस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद भी अगर किसी भी तरह की कोई भी doubt है तो आप मुझे कॉमेंट में बेझिझक पूछ सकते हैं। मैं जरुर उन Doubts को विस्तृत मैं आपको बताने की कोशिश करूँगा।
इंटरनेट की सुरक्षा करने वाला प्रोटोकॉल
जैसे-जैसे तकनीक उन्नत होती जा रही है, वैसे-वैसे कहीं ना कहीं हमारे पर्सनल डेटा पर खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। उसी कड़ी में आज हम एक ऐसे सिक्योरिटी के बारे में बात करने जा रहे हैं जो बहुत ही ज्यादा आज के इंटरनेट की दुनिया में आवश्यक है। इस पोस्ट के अंतर्गत हम जानेंगे SSL सर्टिफिकेट क्या होता है? कितने प्रकार का होता है? कैसे हमारे वेबसाइट या पर्सनल डाटा को सुरक्षित रखता है? कैसे काम करता है? क्या इसे फ्री में भी एक्सेस किया जा सकता है? और HTTP एंड HTTPS में क्या अंतर है? तो चलिए सबकुछ हिंदी में जानते हैं इनके बारे में।
SSL का फूल फॉर्म होता है ‘Secure Sockets Layer’ जब हम किसी वेबसाइट पर कुछ भी सर्च कर रहे होते हैं, तब हमें यह नहीं पता होता है कि यह कितना सुरक्षित है। SSL एक तरह का प्रोटोकॉल है जिसके अपने नियम और क़ायदे हैं जिसके अनुसार यह कार्य करता है। यह वेब सर्वर और ब्राउज़र के मध्य इंक्रिप्टेड लिंक स्थापित करता है जिससे मध्य मे कोई डेटा का दुरुपयोग नहीं कर सकता, या आप जो भी चीजें सर्च कर रहे हैं उससेय डाटा नहीं चुरा सकता।
सामान्यतः अगर वेब ब्राउज़र और वेब सर्वर के मध्य कोई भी डाटा सादे रूप में भेजा जाता है जिससे कोई भी हैकर आसानी से हैक कर उसे प्रभावित कर सकता है।
SSL को 1995 ईस्वी में इसे नेटस्कैप के द्वारा इंटरनेट के संचार में गोपनीयता एवं प्रमाणीकरण उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया।
SSL के उपयोग से किसी भी साइट्स या platform के लिए विश्वास बढ़ जाता है। बात करें इसके प्रकार की तो ये निम्न तीन प्रकार के हैं –
A. VALIDATION के अनुसार वर्गीकरण
1. Domain validated – इसको लेना काफी सरल प्रक्रिया है। इसे अप्लाइ करने के कुछ घंटों मे ही मिल जाता है जिससे वेबसाइट वेरीफाइड हो जाती है। हालांकि सुरक्षा की दृष्टि से यह कमजोर होता है। इसका उपयोग नॉर्मली ब्लॉग एवं छोटे business के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
2. Organization validated – ये सामान्यतः user रेजिस्ट्रैशन एवं e-commerce वेबसाईट या पोर्टल के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके verification के लिए आपको नाम, लोकैशन के साथ-साथ कान्टैक्ट नंबर भी लिया जाता है। इसमे अधिक खर्च के साथ-साथ टाइम भी अधिक लगता है एवं कागजी कारवाई भी होती है।
3. Extended validated – इसका सर्टिफिकेट प्रक्रिया तुलनात्मक रूप से जटिल है। इसमें प्रमाण पत्र मिलने में कई दिन या सप्ताह भी लग जाते हैं। इसमे बिजनेस के साथ-साथ कानूनी पहचान (legal identity) भी होनी जरूरी है। इसका प्रयोग Banking, online finance, Credit कार्ड आदि के लिए किया जाता है।
B. डोमेन के अनुसार वर्गीकरण
1. Single Domain Certificate– यह केवल एक डोमेन के लिए ही कार्य कर सकता है, दूसरे वर्जन के लिए उपयोगी नहीं होता है।
2. Wildcard Certificate Domain- वाइल्ड कार्ड SSL सर्टिफिकेट डोमेन के साथ-साथ सब डोमेन पर भी लागू हो जाता है। उदाहरण के लिए www.domain.com के साथ-साथ blog.domain.com पर भी काम करता है।
3. Multiple Certificate Domain- ये multiple SSLसर्टिफिकेट . com के साथ . in एवं . eu पर भी चलता है।
4. Multiple Wildcard Certificate – यह मल्टीप्ल सर्टिफिकेट डोमेन की तरह ही कार्य करता है | इसके सब-डोमेन को भी SSL सर्टिफिकेट मिल जाते हैं।
5. Code Signing Certificate – यह सर्टिफिकेट कोडर के लिए होता है | इसके अंतर्गत कोडर यह देखता है कि इसने जो कोड बनाया है कहीं वह किसी के द्वारा इंटरप्ट तो नहीं किया गया।
इस प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करना इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि आपका निजी एवं सार्वजनिक डाटा सुरक्षित रहता है। अगर कोई इसे हैक करना चाहता है तो बिना इंक्रिप्शन की (key) के संभव नहीं है।
Step 1. जब यूजर ब्राउज़र पर कुछ भी मतलब जो कुछ उसे सर्च करना या खरीदना है उसके नाम से वेब सर्वर को अनुरोध करता है, उसके बाद SSL सुरक्षित सर्वर पब्लिक key को यूजर के पास भेजता है।
Step 2. यूजर इसके बाद इसको चेक करता है जिस पर वह अपना डाटा शेयर करने वाला है वह भरोसेमंद है या नहीं। यदि भरोसा होता है तो वह एक encrypt मैसेज सर्वर को देता है।
Step 3. इसके बाद अपठनीय डाटा को सर्वर decrypt करता है एवं ब्राउजर को जानकारी देता है कि यूजर के साथ SSL encryption स्टार्ट किया जाए।
इस प्रकार यूजर का पर्सनल और प्राइवेट data सर्वर और ब्राउजर के मध्य सुरक्षित रहता है।
वैसे आपको कही से SSL ख़रीदना चाइए और लगाना चाहिए लेकिन कुछ वेबसाइट हैं जो की फ़्री SSL देते हैं और आपके डाटा को अपने पास रखते हैं
ऐसे ही Cloudflair (https://www.cloudflare.com/) एक वेबसाइट है जहां से आप फ़्री में SSL पे सकते हैं और बधिया भी रहता है, SSL लेने के लिए आपको अपना डोमेन नाम इसमें जोड़ना होता है और नाम सर्वर को आपके DNS में अदद करना होता है।
आप फ़्री SSL https://letsencrypt.org/ से भी ले सकते हैं लेकिन इसकी वैधता 6 महीने होता है और प्रत्येक 6 महीने में आपको renew करना पड़ता है।
अगर आपको होस्टिंग सर्वर के साथ साथ SSL भी ख़रीदना हो तो आप Hostinger से ख़रीद सकते हैं जाह से आपको होस्टिंग के साथ साथ फ़्री में SSL भी मिल जाएगा।
इसको हम एक उदाहरण के तौर पर समझते हैं। मान लीजिए आप अपने मित्र को कोई पत्र लिखते हैं और उसे किसी डाकिए के द्वारा उस तक पहुंचाना चाहते हैं। अब क्योंकि यह जानकारी जो आपने उसे पत्र में लिखी है डाकिया उसे खोल कर पढ़ सकता है। यदि यही काम हम किसी कोड के माध्यम से करें जो आप और आपका फ्रेंड ही समझ पाए तो डाकिया उस जानकारी को चाह कर भी नहीं ले पाएगा।
इसी प्रकार हमारा एचटीटीपी (HTTP) और एचटीटीपीएस (HTTPS), जब कोई भी जानकारी मुझे एक वेबसाइट पर एचटीटीपी दिया जाता है तो सीधे टेक्स्ट में लिखा जाता है जिसको कि कोई भी पढ़ सकता है। परंतु यही एसएसएल (SSL) प्रोटोकोल के प्रयोग होने के बाद एचटीटीपीएस बन जाने पर यह सुरक्षित हो जाता है और कोड के रूप में जानकारी जाती है। इसे बिना एनक्रीपटेड key के कोई नहीं पढ़ सकता।
http का प्रयोग नॉर्मल ब्लॉग या जानकारी देने वाले वेबसाइट के लिए किया जाता है। वहीं दूसरी तरफ https का इस्तेमाल कॉन्फिडेंशियल चीजों के लिए जैसे बैंक अकाउंट क्रेडिट कार्ड पर्सनल डाटा वेबसाइट पेमेंट के लिए किया जाता है।
एक तरफ जहां एचटीटीपी (http) से पेज स्लो डाउनलोड होता है वही एचटीटीपीएस (https) के माध्यम से काफी फास्ट डाउनलोड हो जाता है।
निष्कर्ष
इस प्रकार हम देखते हैं SSL (Secure Sockets Layer) प्रोटोकॉल डेटा की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, जो एन्क्रिप्शन, प्रमाणीकरण, और डेटा की चोरी न होना सुनिश्चित करता है। यह HTTPS में शामिल होता है, जिससे वेब ट्रांसमिशन सुरक्षित होता है और उपयोगकर्ता की sensitive जानकारी को सुरक्षित रखने में मदद करता है।
गूगल में भी HTTPS को भी ज़रूरी कर दिया है इसीलिए हमें हमेशा अपनी वेबसाइट के लिए SSL का प्रयोग ही करना चाहिए।
कृपया उनकी मदद के लिए इस पोस्ट को उनलोगों तक ज़रूर पहुचाएँ जससे की उनकी ज्ञान मैं वृधि हो सके और अच्छे से समझ सकें। मुझे भी आप सब की सहयोग की बहुत आवश्यकता है जिससे कि कम्प्यूटर और इंटेरनेट से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी हिंदी में आप सब तक पहुँचा सकूँ।
इस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद भी अगर किसी भी तरह की कोई भी doubt है तो आप मुझे कॉमेंट में बेझिझक पूछ सकते हैं। मैं जरुर उन Doubts को विस्तृत मैं आपको बताने की कोशिश करूँगा।
इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ने के लिए और लोगों तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद!!
आजकल यूनिफाइड पेंशन स्कीम बहुत ही चर्चे में हैं आप हर जगह यही सुन रहे होंगे की मोदी जी ने UPS लागू कर दिया तो छलिया आज सबकुछ हिंदी में जानते हैं की क्या है क्या है यूनिफाइड पेंशन स्कीम? इसकी विशेषता क्या है और क्यों ये NPS से अलग है?
शनिवार शाम को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम की मंजूरी दे दी। सभी सरकारी करमचारियों ने मोदी सरकार की यूनिफाइड पेंशन स्कीम (Unified Pension Scheme) लागू करने के लिए तारीफ़ की हैं।
सरकारी कर्मचारी संगठनों के ज्वाइंट फोरम – ज्वाइंट कंसल्टेटिव मशीनरी (JCM) के सेक्रेटरी शिव गोपाल मिश्रा ने बताया है कि उन्हें प्रधानमंत्री द्वारा आमंत्रित किया गया था और उन्होंने कहा कि यह पहली बार था कि JCM को किसी प्रधानमंत्री द्वारा आमंत्रित किया गया हो। मीटिंग बहुत ही अच्छी थी। यह सभी 32 लाख सरकारी कर्मचारियों के लिए यह बहुत गर्व का पल था।
सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, यूनिफाइड पेंशन स्कीम में सुनिश्चित पेंशन की व्यवस्था की गई है। इसके तहत कम से कम 25 साल की सेवा के लिए रिटायरमेंट से पहले के अंतिम 12 महीनों में मिली बेसिक सैलरी के औसत के 50% की व्यवस्था की गई है। कम से कम 10 साल तक की सर्विस के लिए यह आनुपातिक होगा।
नीचे कुछ बिंदुवों से समझते हैं की यूनिफाइड पेंशन स्कीम की विशेषता क्या है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इस घोषणा को सभी सरकारी कर्मचारियों पर गर्व जताया। उन्होंने कहा, ‘देश की प्रगति के लिए कठिन परिश्रम करने वाले सभी सरकारी कर्मचारियों पर हमें गर्व है। यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) इन कर्मचारियों की गरिमा और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाली है। यह कदम उनके कल्याण और सुरक्षित भविष्य के लिए हमारी सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
NPS से कैसे अलग है यह स्कीम?
अभी पेंशन के लिए कर्मचारियों को नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) में बेसिक सैलरी का 10 फीसदी हिस्सा कॉन्ट्रिब्यूट करना होता है। इसमें सरकार अपनी ओर से 14 फीसदी हिस्सा सरकार अपनी ओर से देती है। अब UPS में कर्मचारी को कोई भी अंशदान नहीं देना होगा। सरकार अपनी तरफ से कर्मचारी की बेसिक सैलरी का 18.5 फीसदी हिस्सा जोड़ेगी। इससे पहले सभी सरकारी कर्मचारी पेंशन को बहाल करने की माँग कर रहे थे।
सरकारी कर्मचारियों की पेंशन का मुद्दा लोकसभा चुनाव में भी हावी था। काफी कर्मचारी पुरानी पेंशन (OPS) को बहाल करने की मांग कर रहे थे। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी पेंशन का मुद्दा उठाया था। कर्मचारी संगठनों ने OPS को बहाल करने को लेकर फरवरी में प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र भी लिखा था। पत्र में मांग की गई थी कि सरकार NPS बंद करे और गारंटीकृत ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करे। संगठनों ने कहा था कि अगर उनकी मांग पूरी न की गई तो वे एक मई से हड़ताल करेंगे। हालांकि सरकार से बातचीत और आश्वासन मिलने के बाद हड़ताल को टाल दिया गया था।
इस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद भी अगर किसी भी तरह की कोई भी doubt है तो आप मुझे कॉमेंट में बेझिझक पूछ सकते हैं। मैं जरुर उन Doubts को विस्तृत मैं आपको बताने की कोशिश करूँगा।
इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ने के लिए और लोगों तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद!!
पिछले कुछ सालों में डिजिटल पेमेंट का स्तर बहुत ही बदल गया है। अब ज्यादातर लोग कैश के बदले यूपीआई या ऑनलाइन पेमेंट का इस्तेमाल करते हैं। इसके कारण ऑनलाइन ट्रांजैक्शन काफी आसान और सुविधाजनक हो गया है। इसके साथ ही लोगों की सुरक्षा और धोखाधड़ी के कई मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे ही अब UPI ऑटो पेमेंट रिक्वेस्ट स्कैम लोगों को प्रभावित कर रहे हैं। UPI ऑटो पे रिक्वेस्ट से हो रहे हैं स्कैम, कहीं आप भी तो नहीं बन रहे शिकार? आइये इसके बारे में जानते हैं।
पिछले एक दशक में डिजिटलाइजेशन के चलते लोगों में ऑनलाइन ट्रांजैक्शन को लेकर जागरूकता आई और इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। ऐसे में लोगों में UPI ट्रांजैक्शन को लोकप्रियता बढ़ी है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि ये पेमेंट की प्रक्रिया को आसान और सुविधाजनक बना देता है।
नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCA) ने अपने रिपोर्ट में बताया कि 2024 में UPI द्वारा लगभग 20.64 लाख करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन किया गया है। इससे ये बात तो तय है कि हजारों-लाखों लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। मगर आज कल एक नया स्कैम सामने आया है, जो UPI ऑटो पेमेंट रिक्वेस्ट स्कैम के नाम से जानते हैं। आइये इसके बारे में जानते हैं।
यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस या UPI आपको QR कोड और UPI ID सिस्टम के साथ ऑनलाइन पेमेंट को बहुत आसान बना दिया है। मगर हमारे कुछ पेमेंट के लिए हमें एक निश्चित अवधि का इंतजार करना होता है और कभी-कभी हम इसके बारे में भूल जाते हैं। ऐसे में UPI ऑटो पेमेंट सुविधा काम आती है।
आपके मन में तो ज़रूर चल रहा होगा कि ये UPI ऑटो-पे रिक्वेस्ट स्कैम क्या है और कैसे काम करता है, मतलब आपके अकाउंट से ऑटमैटिक पेमेंट कैसे काट लिया जाता है।
हमारे लिए जरूरी है कि हम इस तरह के स्कैम से सुरक्षित रहें। चलिए हम आपको बताते हैं कि आप कैसे इस स्कैम से खुद को सुरक्षित रह सकते हैं। नीचे कुछ प्वॉइंट्स को ध्यान में रखकर आप सुरक्षित रह सकते हैं।
ऊपर दिए गए बिंदुवों के अलावा भी आपको शतर्क रहना पड़ता है, क्यूँकि ऑनलाइन पेमेंट्स का खेल है भैया।
ऊपर दिए गए प्वॉइंट्स को लोगों को ऐसे स्कैम से बचाने के लिए और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को बताने के लिए इस पोस्ट को शेर ज़रूर करें, आपको भी कही कुछ इस तरीक़े का स्कैम नज़र आता है तो कॉमेंट में ज़रूर बताएँ।
इंटरनेट जगत मे क्रांति लाने वाला वेब
एक दिन मेरा छोटा भाई आया और मुझसे पूछा “भैया ये साइट मे www क्यों लिखा रहता है?” सवाल तो वाजिब था उसका और कहीं ना कहीं आपके में मन भी आया होगा। इसके साथ ही साथ बहुत सारी चीज़े जानेंगे जैसे की WWW क्या है और कार्य कैसे करता है, और क्या ज़रूरत पड़ी www का, तो चलिए सबकुछ हिंदी में www की दुनिया से www के बारे में जानते हैं।
WWW का फूल फॉर्म World Wide Web होता है। आज इंटरनेट आम जीवन का एक खास हिस्सा बन चुका है, आज आपको इंटरनेट के बिना रहने के लिए बोल दिया जाए तो आप कुछ पल भी नहीं रह पाएँगे, वकायी में ये सच है और आज जितनी आसानी से चीज़े इंटरनेट पर हमें मिल जाती है इसके इसके बारे में कभी कल्पना भी नहीं कर सकते थे और आज से कुछ वर्ष पहले ये सब कुछ इतना आसान नहीं था, तभी आया www यानी की वर्ल्ड वाइड वेब।
WWW एक प्रकार से web pages का समुच्चय (set) है जिसका इस्तेमाल हम इंटरनेट के माध्यम से कर सकते है। अगर ये कहा जाए की ये एक प्रकार का सूचनाओ का संग्रह है तो गलत नहीं होगा। टेक्स्ट, औडियो, विडिओ और डॉक्युमेंट्स हाइपरलिंक का उपयोग करके इनकी जानकारी हम तक पहुचाते है।
जब हम जानकारी के लिए कोई keyword या वाक्यांश टाइप करते है तब www हाइपर्टेक्स्ट के माध्यम से समझ कर उसे हमारे समक्ष लाता है।
आप जो अभी ये पोस्ट पढ़ रहे हैं वो भी www के माध्यम से ही निकल कर के आया है।
एक बार टीम बर्नर्स अपने टीम के सदस्यों के साथ काम कर रहे थे तभी उनको एक कंप्यूटर के डाटा को किसी दूसरे कंप्यूटर में पहुंचाना था, ऑफ़्लाइन तो यह सम्भव था की किसी डिस्क के माध्यम से हो सकता था लेकिन अगर कहिन दूसरे जगह जो काफ़ी दूर हो पहुँचना रहे तो कैसे पहुँचाएँगे, इसी दौरान टिम को एक खास तरह का आइडिया सूझा, उन्होंने सोचा कोई तो ऐसा खास तरीका होना चाहिए, जिसकी मदद से सारे डाटा को एक साथ पिरोया जा सके, और इसी के बाद WWW की शुरुआत हुई।
WWW की शुरुआत टीम बर्नर्स के द्वारा सन् 1989 में की गई। सन् 1990 ईस्वी में CERN भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला में टीम बर्नस ली द्वारा इसे बनाया गया।1991 ईस्वी में पहला वेब ब्राउज़र विकसित हुआ।1993 ई में मोजैक वेब ब्राउज़र के विकसित होने से इसके लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई। हालांकि 1990ई. तक इसके लगभग एक लाख यूजर हो चुके थे। वेब वेब ब्राउज़र में सबसे अधिक प्रसिद्ध होने वाला मोज़िला फायरफॉक्स था जो 2004 में आया था। इसकी खासियत थी कि स्पीडिंग और प्राइवेसी की सुविधा प्रदान करता था।
सन् 2008 में गूगल द्वारा क्रोम ब्राउज़र डेवलप किया गया, जो की 2013 तक बहुत फेमस हो गया जो आज भी हमलोग प्रयोग करते हैं इसमें अलग-अलग टैब होने की वजह से काम रुकता नहीं हैं।
वेब 2.0 जहां सोशल मीडिया और यूजर जेनरेटेड कंटेन्ट प्रदान किया है वही वेब 3.0 ने ए. आई. और ब्लॉकचैन जैसी तकनीकी शामिल कर दिया है |
वेब कैसे काम करता है इसकी जानकारी होने से पहले उसके घटकों की जानकारी प्राप्त कर लेना बेहतर है जिनकी सहायता से यह कार्य करता है।
1. वेबसाइट एवं वेब पेज- www के अंतर्गत बहुत से वेब पेज को मिलाकर एक वेबसाइट बनाई जाती है जिसमें सारे के सारे पेज एक दूसरे से हाइपरलिंक (लिंक) के द्वारा जुड़े होते हैं। सभी जानकारी को वेब ब्राउज़र द्वारा प्राप्त किया जाता है। वेबपेजेज के अंतर्गत केवल टेक्स्ट अपितु ऑडियो, वीडियो, मल्टीमीडिया, लिंक, टेबल्स, इमेज, एचटीएमएल आदि चीजे शामिल रहती है। जैसे http://sabkuchhindime.in/ एक वेबसाइट है और आप www के माध्यम से ही इसे प्रयोग कर के आप ये पोस्ट पढ़ पा रहे हैं।
2. हाइपरलिंक– इसके द्वारा किसी एक वेबपेज से दूसरे वेबपेज पर पहुंचा जा सकता है। यहां पर आपको ऑडियो, वीडियो, टेक्स्ट, इमेज को भी हाइपरलिंक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि आप किसी वीडियो पर क्लिक करते हैं और किसी वेब पेज पर इसके द्वारा जाकर कोई जानकारी प्राप्त करते हैं तो यह एक प्रकार का हाइपरलिंक है।
3. HTML– इसका पूरा नाम हाइपरटेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज है। इसकी सहायता से वेब पेज को डिजाइन किया जाता है।
4. वेब सर्वर– इसके अंतर्गत बहुत से फाइलों को वेबसाइट के अंतर्गत स्टोर करके रखा जाता है। उपयोगकर्ता के द्वारा अनुरोध करने पर उसके ब्राउज़र तक इन फाइल को पहुंचा दिया जाता है। यह न सिर्फ फाइल्स को मैनेज करता है बल्कि ट्रैफिक को कंट्रोल करने का भी काम करता है। वेब सर्वर के बारे में अधिक जानने के लिए यहाँ कलीक करें।
5. URL– UNIFORM Resource Locator जैसा नाम से ही प्रतीत होता है कि रिसोर्स को लोकेट करने वाला होगा।
यह वह है जिसे आप किसी ऑनलाइन संसाधन तक पहुंचने के लिए अपने ब्राउज़र के एड्रेस बार में टाइप करते हैं।
इसकी मदद से वेब पेज एवं वेबसाइट या फाइल तक पहुंचा जा सकता है। इसे हमलोग Web एड्रेस भी बोलते हैं।
इसके तीन भाग होते हैं – http प्रोटोकोल के रूप में डोमेन नाम और सोर्स पथ।
6. वेब ब्राउज़र – वेब पर लिखी कोई भी जानकारी एचटीएमएल में लिखी होती है। साधारणतः देखने पर हमें बिल्कुल भी समझ में नहीं आएगा क्योंकि ब्राउज़र ग्राफिकल इंटरफ्रेंस प्रदान करता है इसलिए इसकी आवश्यकता होती है।
7. HTTP – Hypertext transfer protocol इसका उपयोग वेब सर्वर और ब्राउजर के मध्य डाटा का स्थानांतरण करने के लिए कीया जाता है। HTTPS एक secured रूप है जो सामान्यतः HTTP को गोपनीयता एवं सुरक्षा प्रदान करता है।
8. सर्च इंजन – सर्च इंजन वेब सामग्री को उपयोगकर्ता की खोज के योग्य बनाने के लिए क्रमवार लगाते हैं। इसके लिए एल्गोरिथम प्रयोग किया जाता है। जिससे कि उसे अधिक प्रासंगिक और कुशल जानकारी प्राप्त हो सके।
Step 1– जब हम वेब ब्राउज़र में domain name या यूआरएल सर्च करते हैं तब डोमेन नेम सिस्टम (DNS) इसे आईपी address मे बदल देता है। कोई भी डोमेन नाम किसी ना किसी IP से जुड़ा हुआ होता है, बिना उसके आपका डोमेन काम ही नहीं करेगा। जैसे http://sabkuchhindime.in/ एक डोमेन नाम है जो की एक वेबसाइट का है और ये किसी ना किसी IP से भी जुड़ा हुआ है।
Step 2- ब्राउजर http के डोमेन address से संपर्क करता है तथा उसे खोजने का अनुरोध करता है।
Step 3- इसके बाद http एवं https जो की इनके अपने नियम के अनुसार ब्राउजर और सर्वर के बीच डेटा का ट्रान्स्फ़र होता है।
Step 4– जिससे आईपी address मैच हो जाने पर web browser मे आपको डेटा यानी की जो इन्फ़र्मेशन आपने सर्च किया था वो आपको दिखता है।
1. Surface वेब– वेब का ऐसा भाग जो सभी सामान्य लोगों के द्वारा गूगल क्रोम, यूट्यूब, फेसबुक, विकिपीडिया सोशल मीडिया आज जैसे चीजों को देखा जा सकता है। सामान्यतः ऐसा कहा जाता है की जो सारी चीजें हमारी पहुँच मे आसानी से आ जाती है वो सरफेस वेब के अंतर्गत आती हैं।
2. Intranet– इसका उपयोग आंतरिक उपयोग के लिए किया जाता है।
3. Deep वेब– इसके अंतर्गत कोई भी जानकारी आसानी से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसमें फाइनेंशियल डिटेल्स, रिसर्च पेपर, अंतरिक्ष अनुसंधान और सेक्रेट डॉक्यूमेंट जैसे बहुत से दस्तावेज रखे होते हैं और यहां की प्राइवेसी सिक्योरिटी उच्चतम दर्जे की होती है।
4. Dark web– अनैतिक कार्यों के लिए किया जाता है जैसे ड्रग्स, ह्यूमन ट्रैफिकिंग, डेबिट कार्ड से डिटेल्स, लाइव मर्डर, बायोलॉजिकल एक्सपेरिमेंट, साइबर क्राइम, जैसे अनैतिक काम होते हैं। इसका उसे करना गैरकानूनी है।
इस प्रकार हम देखते है की वेब की वजह से समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। जिसकी वजह से हम किसी भी विषय में एक गहन जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
हालांकि इसके फायदे के साथ काफी नुकसान भी है जैसे धोखाधड़ी, गलत सूचनाओ का आदान-प्रदान के साथ साथ ड्रग्स, चोरी के सामान, अवैध हथियार जैसे भी काम होते है।
अगर इसे सावधानी एवं नैतिक मूल्यों के साथ उपयोग किया जाय तो इसका कोई जवाब नहीं।
कृपया उनकी मदद के लिए इस पोस्ट को उनलोगों तक ज़रूर पहुचाएँ जससे की उनकी ज्ञान मैं वृधि हो सके और अच्छे से समझ सकें। मुझे भी आप सब की सहयोग की बहुत आवश्यकता है जिससे कि कम्प्यूटर और इंटेरनेट से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी हिंदी में आप सब तक पहुँचा सकूँ।
इस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद भी अगर किसी भी तरह की कोई भी doubt है तो आप मुझे कॉमेंट में बेझिझक पूछ सकते हैं। मैं जरुर उन Doubts को विस्तृत मैं आपको बताने की कोशिश करूँगा।
इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ने के लिए और लोगों तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद!!
कंप्युटर वायरस आधुनिक समय मे इंटेरनेट की घातक समस्या
Virus नाम सुनते ही हम किसी महामारी जैसी या फिर कहें ज्यादा सावधान वाला भाव उमड़ पड़ता है। खैर आज हम जिस वायरस की बात करने जा रहे , वो biological ना होके बल्कि टेक्निकल फील्ड से संबंध रखता है, जिसे कंप्युटर वायरस कहते है। आपने इसके बारे मे सुना तो होगा ही, आज हम इस पोस्ट में जानेंगे की कंप्युटर वायरस क्या होता है?, कितने प्रकार के होते है, कैसे आपके कम्प्यूटर और मोबाइल से चीजें चुराता है और कैसे वाइरस से बचा जा सकता है?
VIRUS जिसका फूल फॉर्म Vital Information resources under siege होता है। कंप्युटर वायरस एक प्रकार का हानिकारक प्रोग्राम या प्रोग्राम का एक सेट होता है जो आपकी कंप्युटर सिस्टम मे बिना आपकी जानकारी के घुस के आपके फाइल को खराब या बंद के साथ ही साथ महत्वपूर्ण फ़ाइलें चुरा लेता है। ये अपने आप को दोहरा कर के साथ-साथ अपने रूप को बदल कर प्रोग्राम मे प्रवेश कर जाते है। ये वायरस अक्सर फाइल्स या नेटवर्क के द्वारा फैलकर सिस्टम को क्षति एवं सुरक्षा मे सेंध लगाते हैं।
अगर हम बात करें इसके इतिहास के बारे मे तो सर्वप्रथम बनने वाला वायरस ‘the creeper’ था, जिसे सन् 1971 मे Bob thomas ने बनाया था।
1980 के दशक तक तो लोग कंप्युटर वायरस के बारे मे विश्वास नहीं करते थे की ऐसा भी कुछ होता है। 1983 ई. मे फ़्रेडकोहेन ने कंप्युटर वायरस की खोज की |
बात करें आधुनिक वायरस की तो उसका नाम C-brain है जिसे अमजद तथा बसित नाम के दो पाकिस्तानी ने बनाया है।
जबकि सबसे खतरनाक वायरस की तो उसका नाम ‘मायडूम वायरस’ जो 2004 मे आया था और जिसकी वजह से लगभग 38 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था। इसका दूसरा नाम नॉवार्ग था, यह ईमेल के द्वारा किसी के सिस्टम में प्रवेश करता था।
कम्प्यूटर वायरस के कुछ सामान्य प्रकार निम्न हैं।
1. Boot sector virus– इस प्रकार के वायरस कंप्युटर सिस्टम ऑन करने पर ऑपरेटिंग सिस्टम को ख़राब करते हैं, और यह हार्ड डिस्क मे कुछ कोड दल देते हैं जिस्सए की कंप्युटर को चालू करते ही सारी मेमोरी चला जाता है और सारे फ़ाइलस डिलीट हो जाते हैं।
2. Trojan horse- ये एक प्रकार का मालवेर है, ये अपने आप नहीं फैलता जब इसे activate या run किया जाता है तब ये ऐक्टिव होता है। ये वायरस आपके सिस्टम/मोबाइल में भेजकर इंस्टॉल करवाया जाता है, उसका माध्यम कुछ भी सकता है जैसे कोई फ़ाइल, कोई ऐप्लिकेशन, कोई सेटप या और भी तरीक़े हो सकते हैं। एक बार जब ये इंस्टॉल हो गया फिर सारी डाटा को दूसरे के पास भेज भी सकता है सारे डिलीट भी कर सकता देता है।
3. Resident virus– इससे किसी भी कंप्युटर का ऑपरेटिंग सिस्टम फाइल एवं प्रोग्राम प्रभावित होता है। रेसीडेंट वायरस प्राइमेरी मेमोरी (RAM) में पाए जाते हैं जिसमे सभी फाइल को ख़राब करने की क्षमता होती है।
4. Macro virus– मैक्रो वायरस स्प्रेड्शीट फाइल को corrupt करते हैं। और ज़्यादातर ये ईमेल के द्वारा आते हैं मतलब ये माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के लिए बहुत ही हनिकराक होता है।
5. Multipartite virus– मल्टीपैरटाइट वायरस कई तरीकों से कंप्युटर को संक्रमित करता है। वैसे ये सामान्यतः कंप्युटर मेमोरी से होते हुए boot sector एवं executable files दोनों पर हमला करता है। ऑपरेटिंग फाइल को इंफेक्ट करता है।
6. File infector virus- फाइल इंफेक्टर वायरस ये . exe और .com जैसी फाइल्स को संक्रमित करता है। इसका सोर्स गेम और वर्ड प्रोसेसिंग माना जाता है |
7. Overwrite virus– overwrite वायरस बहुत ही खतरनाक वायरस है। यह किसी भी डेटा को डिलीट कर सकता है एवं किसी भी फाइल को replace कर देता है। और इसका solution फिर फाइल को डिलीट या हटा के ही किया जाता है। यह windows, dos एवं एप्पल जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम को प्रभावित कर सकता है।
8. Polymorphic virus– Poly का मतलब होता है ‘कई’ और morphic का मतलब होत है ‘रूप’। ये हमेशा अपने आप को बदलता रहता है, इसलिए इसको पहचान पाना मुश्किल होता है। यह वेबसाईट के द्वारा आपके सिस्टम या मोबाइल में आता है और फ़ाइल्स को खराब कर देता है।
9. Spacefiller virus – spacefiller वायरस आपके कंप्युटर का स्पेस ले लेता है और आपको पता भी नहीं चलता जबकि इसका इसका प्रभाव भी किसी फाइल या डेटा पर नहीं पड़ता।
1. अनुपयोगी फाइल डाउनलोड से करने से हमेशा malware का खतरा बना रहता है।
2. किसी ऐसे दूसरे कंप्युटर मे कनेक्ट करने से यदि उसमे वायरस है तो वो आपके भी कंप्युटर मे आ सकता है।
3. Pirated वेबसाइट से सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने से भी हम वायरस को आने का न्योता देते देते हैं।
4. इंटरनेट से आजकल वायरस आना काफी कॉमन है।
5. डाटा ट्रांसफर करने के दौरान pendrive या बाहरी उपकरण प्रयोग से संक्रमित होने से आपका भी कंप्युटर संक्रमित हो सकता है।
6. अनजाने ईमेल एवं attachment के क्लिक करने पर संक्रमण हो जाता है।
7. पुराने अपडेट न कीये गए सॉफ्टवेयर मे कमियो की वजह से वायरस का संक्रमण होना आसान हो जाता है।
8.नेटवर्क सुरक्षा मे कमी से यदि आपका पासवर्ड बहुत स्ट्रॉंग नहीं है तो हैकर के लिए वायरस से संक्रमण कराना आसान हो जाता है।
9. पब्लिक वाइफ़ाई जैसे रेलवे स्टेशन, किसी कैफ़े, मेट्रो स्टेशन, या कोई भी ऐसे वाइफ़ाई जो सभी के लिए खुले हों उससे भी वाइरस आने की सम्भावना बध जाता है।
1. Antivirus– Antivirus का इस्तेमाल करके कंप्युटर को वाइरस से बचाया जा सकता है जो की आपको मार्केट से कुछ रुपए में मिल जाता है।
2. पॉप-उप विज्ञापन पर क्लिक ना करें– पॉप-उप पे क्लिक करने से अनवांटेड साइट्स खुल जाने की वजह से वायरस के आने का रास्ता आसान हो जाता है।
3. समय समय पर कंप्युटर सॉफ्टवेयर को अपडेट करते रहने से जो भी सॉफ्टवेयर की कमियाँ होती है वो पूरी होती रहती है जो वायरस से बचाने मे भी मदद करती है।
4. मजबूत पासवर्ड – एक मज़बूत पासवर्ड की मदद से जो सेंध आसानी से मारी जा सकती है उसमे अवरोध बनाता है। हमेशा पासवर्ड को दो लेयर का रखना चाहिए।
6. firewall का प्रयोग– यह भी एक तरह का एंटिवाइरस है जो डिवाइस को संक्रमित होने से बचता है। इसके बारे में किसी और पोस्ट विस्तृत रूप से जानेंगे।
7. शेयर की गई फाइल एवं डाउनलोड की गई फाइल को पहले स्कैन करना- किसी भी अनौपचारिक वेबसाईट से कुछ भी डाउनलोड करें उसको स्कैन करने से वायरस से खतरा नहीं होता है, और आपका कंप्युटर बचता है।
8. ईमेल अटैच्मन्ट को स्कैन करना– कभी भी जब संदिग्ध लगे तो ईमेल अटचमेंट को क्लिक करने से बचे और इसके लिए एंटिवाइरस का उसे करें।
वैसे कुछ ऐंटिवायरस हैं जो सही हैं जैसे की NORTON, AVIRA, Mcafee, AVAST एंटिवाइरस के नाम है , जिसका इस्तेमाल कर के आप अपने फ़ाइल और डाटा को बचा सकते हैं लेकिन फिर भी आपको सतर्क रहना ही पड़ता है।
विंडो १० से ऊपर के सभी कंप्युटर जिसमें आप Window ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग करते हैं उसमें डिफ़ेंडर नेम से पहले से ही एक एंटिवाइरस होता है आपको अलग से कुछ कोई भी एंटिवाइरस डालने की ज़रूरत नहीं होता।
जब आपका डिवाइस या कंप्युटर धीमा हो जाए पॉप-उप विंडो से कुछ अनचाही साइट्स खुलने लगे, अकाउंट logout, ब्राउजर सेटिंग मे चेंज, आइकान अजीब से प्रोग्राम खुद से चलने लगे, आदि चीज़े इसके लक्षण है और आपका सिस्टम वायरस से संक्रमित हो चुका है। और आपको देखने की ज़रूरत है की किस प्रकार का वाइरस और कहाँ से आया है, आप एंटिवाइरस के माध्यम से स्कैन कर के भी उसे हटा सकते हैं।
निष्कर्ष
इस प्रकार हम देखते है की कंप्युटर वायरस एक ऐसा कंप्युटर रोग है जिससे आपकी सालों की मेहनत पर मिनटों में पानी फेर सकता है। आजकल इसका misuse हर जगह दिखाई दे जाता है। इससे बचाव का एक ही उपाय है की हम सतर्क रहे अपने पासवर्ड, एंटिवाइरस आदि को लगातार प्रयोग करते रहे। सॉफ्टवेयर का अपडेट के साथ-साथ नियमित बैकअप लेते रहे। दो स्तरीय प्रमाणीकरण रखें।
इस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद भी अगर किसी भी तरह की कोई भी doubt है तो आप मुझे बेझिजक पूछ सकते हैं। मैं जरुर उन Doubts को विस्तृत मैं आपको बताने की कोशिश करूँगा।
एस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद अगर आप Antivairus के बारे में थोड़ा भी समझ गए होंगे तो कृपया इस पोस्ट को सोशल मीडिया जैसे कि Facebook, Twitter इत्यादि पर share ज़रूर करें।
कैमरा, मोबाईल इत्यादि का मुख्य अंश है sd card
मेमोरी कार्ड इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का एक ऐसा हिस्सा जिसके बिना ये पूर्ण नहीं हो सकता। एक समय था जब मोबाईल मे स्टोरेज कम होने पे एक अलग डिवाइस लेके जाते थे और फिर अच्छे-अच्छे गाने उसमे भरवा के सुना करते थे। पर इस हम बात से अनजान थे की आखिरकार ये गाने रहता कहाँ है? मेमोरी कार्ड क्या होता है? और यह काम कैसे करता है? तो चलिए आज सबकुछ हिंदी में जानते हैं मेमोरी कार्ड के बारे में जो आपको शायद पता नहीं होगा।
मेमोरी कार्ड जिसे फ्लैश मेमोरी भी कहा जाता है एक प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक संग्रहण डिवाइस है। जिसमें हम डाटा का संग्रह बिना किसी पावर के श्रोत के भी करते हैं और उसे डिलीट भी कर सकते हैं। इससे डेटा को रिकवर भी किया जा सकता है। मेमोरी कार्ड का उपयोग हम मोबाईल, कैमरा, टैबलेट एवं वीडियो गेम्स इत्यादि मे करते हैं, जिसमे फ़ोटोज़, वीडियोज़, गाने, और अपनी जरूरत की चीज़े सम्भाल के के रख सकते है |
मेमोरी कार्ड का आविष्कार टोक्यो (तोशिबा कंपनी) मे फुजीओ मसूओका ने 1980 ई० मे की थी। 1990 मे इसे PC कार्ड मे उतारा गया। जिसका काम input और output डिवाइस को जोड़ने के लिए किया गया।
1994 मे इसे कम्पैक्ट फ्लैश स्मार्ट मीडिया कार्ड मे लाया गया।
किसी भी मेमोरी मे डेटा इलेक्ट्रॉनिक सीरीज के माध्यम से जिसे NAND चिप कहा जाता है मे स्टोर होता है। इन चिप्स का काम ये होता है की स्टोर कीये हुए अपने डाटा को बिना भटके तेजी से ट्रान्स्फ़र कर सके।
मेमोरी कार्ड एक सालिड स्टेट चिप होती है। जिसका ऊपरी भाग पर प्लास्टिक तथा उसके अंदर इलेक्ट्रिक सर्किट होता है। जब मेमोरी कार्ड को ऐक्टिव डिवाइस के अंदर डाला जाता है तब small electric current मेमोरी कार्ड को ऐक्टिव कर देता है। जिसके उपरांत मोबाईल या कोई और डिवाइस read और उसके बाद write करता है |
मेमोरी कार्ड छोटे होने के साथ साथ पोर्टेबल होते है, इसे कहीं भी साथ में ले जाना बहुत आसान होता है, आजकल तो बहुत छोटे छोटे मेमरी कार्ड आ गए हैं जो कि हमारे मोबाइल, कैमरा और अन्य उपकरणों में लगे होते हैं, और बहुत ही अधिक क्षमतावान होते हैं। इसमें कुछ भी स्टॉरिज के लिए पावर की बहुत कम आवश्यकता होती है, बस इसमें कुछ भी भेजने में पावर का प्रयोग होता है उसके बाद पावर को अगर आपको फिर से लेना है तो ज़रूरत होती है, आपके डाटा को शुरक्षित रखने के लिए पावर श्रोत की कोई आवश्यकता नहीं होता। ये multiple डिवाइस मे लगाये जा सकते है। इनकी कपैसिटी भी अलग-अलग उपलब्ध है जिसे अपने जरूरत के हिसाब से चुना जा सकता है।
मेमोरी कार्ड मुख्यतः निम्न प्रकार है –
1. SD कार्ड- जिसका फूल फॉर्म secure digital कार्ड होता है जिसके भाग है –
A. SDSC (secure digital standard capacity): ये नॉर्मल प्रयोग के लिए इस्तेमाल की जाती है। इसकी क्षमता 0-2 GB होती है।
B. SDHC (सिक्युर डिजिटल high capacity): इसका उपयोग 2006 मे हुआ था तथा इसका 2.0 वर्जन था। इसकी क्षमता 2-32 GB होती है।
C. SDXC (secure digital extended capacity): इसका निर्माण जनवरी 2009 मे हुआ था। तथा इसकी क्षमता 32-2 TB तक था और ये लगभग 300MB/s की स्पीड से डाटा ट्रान्स्फ़र करता है।
D. SDUC (secure digital ultra capacity): इसका निर्माण 2018 मे हुआ था।
2. micro sd कार्ड: जिसका उपयोग टैबलेट मोबाईल आदि मे किया जाता है इसके micro sd sdhc जिसकी क्षमता 4-64 GB तक होती है जबकि इसका micro sd sdxc की कपैसिटी 64-2 TB होती है |
इसके अलावा compact Flash, xqd एवं CF express आदि मेमोरी कार्ड हैं, जिसका प्रयोग हमारे आम ज़िंदगी में नहीं होता है किसी अन्य चीजों के लिए किया जाता है।
इस प्रकार मेमोरी कार्ड हमारे महत्वपूर्ण फ़ोटोज़ वीडियोज़ एवं जानकारी को स्टोर करने मे काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जहां इसके आकार मे छोटे होने से कहीं भी ले जा सकते है वही खोने का भी डर बना रहता है। इसको धूप से, इलेक्ट्रॉनिक sources से दूर रखना पड़ता है नहीं तो damage होने का खतरा बना रहता है।
आशा है कि आप मेमोरी कार्ड के बारे में कैसे काम करता है के बारे सबकुछ हिंदी में समझ गए होंगे।
हमारे बीच ऐसे कई बच्चे, नौजवान होंगे जिन्हें मेमोरी कार्ड के बारे में पता नहीं होगा और इसके बारे समझ नहीं पा रहे होंगे कृपया उनकी मदद के लिए इस पोस्ट को उनलोगों तक ज़रूर पहुचाएँ जससे की उनकी ज्ञान मैं वृधि हो सके और अच्छे से समझ सकें।
इस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद भी अगर किसी भी तरह की कोई भी doubt है तो आप मुझे बेझिजक पूछ सकते हैं। मैं जरुर उन Doubts को विस्तृत मैं आपको बताने की कोशिश करूँगा।
एस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद अगर आप मेमोरी कार्ड के बारे में थोड़ा भी समझ गए होंगे तो कृपया इस पोस्ट को सोशल मीडिया जैसे कि Facebook, Twitter इत्यादि पर share ज़रूर करें।